गोड्डा/मेहरमा: मेहरमा थाना परिसर, वहां के निलंबित थाना प्रभारी, महागामा विधानसभा की विधायक दीपिका पांडे सिंह एक बार फिर से चर्चा में हैं। इस चर्चा के पीछे की वजह है वो टकराव जो पुलिस और एक जन प्रतिनिधि यानि विधायक दीपिका पांडे सिंह के बीच शुरु हुई है। इस टकराव केंद्र में खुद विधायक, उनके सहयोगी और मेहरमा थाना के निलंबित थाना प्रभारी कश्यप गौतम हैं।
रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात को दोनों तब आमने सामने हो गए जब कश्यप गौतम मेहरमा में अपने किसी जान पहचान वाले के घर पर थे। कश्यप गौतम के मुताबिक उसी वक्त वहां पर विधायक दीपिका पांडे सिंह अपने सहयोगी रॉबिन मिश्रा के साथ आती हैं और उनके साथ (कश्यप गौतम) के साथ मारपीट की जाती है। उनके पास जो फाइल थी उसमें से एक फाइल को विधायक और उनके सहयोगी के द्वारा फाड़ दिया जाता है। दूसरी फाइल को उनसे छीनकर वो अपने साथ ले कर जले जाते हैं। आरोप में ये भी कहा गया है कि उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी जाती है।
ये घटनाक्रम रविवार और सोमवार के दरम्यानी रात की है। सोमवार के विवाद और टकराव की शुरुआत यहीं से हुई। अब सोमवार के घटनाक्रम का जिक्र होना भी जरुरी है।
निलंबित थना प्रभारी कश्यप गौतम की तरफ से मेहरमा थाना में शिकायत दर्ज करवाई गई जिसमें विधायक दीपिका पांडे सिंह और उनके सहयोगी रॉबिन मिश्रा पर कई आरोप लगाए गए। इन आरोपों और शिकायत के बाद मेहरमा थाना में विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है। जिसके बाद विधायक खुद मेहरमा थाना पहुंचती हैं अपनी गिरफ्तार देने।
विधायक दीपिका पांडे सिंह ने कहा कि उनपर जो भी आरोप लगाए गए हैं वो बेबुनियाद हैं। मारपीट के आरोप को उन्होंने सिरे से खारिज किया। जहां तक फाइल साथ ले जाने और फाड़ने की बात है तो उनका कहना है कि किसी भी फाइल को फाड़ा नहीं गया है। हां एक फाइल वो अपने साथ ले गईं जिसकी जानकारी उन्होंने रात के वक्त ही एसपी वाईएस रमेश को दे दी।
विधायक की तरफ से ये सवाल भी उठाए गए कि जिस थाना प्रभारी को सस्पेंड कर दिया गया है वो रात के वक्त उसी थानाक्षेत्र में किसी व्यक्ति के घर पर सरकारी फाइल के साथ क्या कर रहे थे? विधायक की तरफ से ये भी आरोप लगाए गए हैं कि जिस फाइल को ले जाने की बात कही जा रही है वो एक मर्डर केस की फाइल थी। जिसका सेटलमेंट करने के लिए उस घर पर और भी लोगों को बुलाया गया था। जहां पर लेनदेन कर मामले पर लीपापोती की जानी थी। जिसकी जानकारी उन्हें किसी ने दी।
आरोप दोनों तरफ से लगाए गए हैं। सफाई भी दोनों तरफ से दी जा रही है और खुद को सही साबित करने की कोशिश भी दोनों तरफ से की जा रही है। ऐसे मामलों में ये सबकुछ पहली बार नहीं हो रहा इससे पहले भी होता रहा है। खैर यहां पर कुछ सवाल भी हैं जो अपनी जगह पर वाजिब हैं, जिसे पूछा जाना चाहिए।
सवाल ये है कि क्या अगर कोई पुलिस अधिकारी सस्पेंड कर दिया जाता है तो उसे अपने पुराने थानाक्षेत्र में आने जाने की मनाही होती है? सवाल ये भी है कि क्या किसी विधायक को ये अधिकार होता है कि वो अपने विधानसभा क्षेत्र में किसी के भी घर किसी भी वक्त घुस जाए? क्या एक निलंबित पुलिस अधिकारी को कहीं आने जाने से पहले उस इलाके के विधायक से इजाजत लेनी चाहिए? सवाल ये कि अगर निलंबित थाना प्रभारी गलत नीयत से गलत काम के लिए किसी घर में मौजूद थे जिसकी जानकारी विधायक को मिली थी तो क्या इसकी जानकारी जिले के आला पुलिस अधिकारी को नहीं दी जानी चाहिए थी? क्या विधायक के पास कानून का काम खुद करने का भी अधिकार होता है? क्या सरकारी फाइल को विधायक अपने साथ ले जा सकता है? सवाल ये भी बनता है कि अगर निलंबित थाना प्रभारी कश्यप गौतम ने अपना प्रभार सौंप दिया था तो फिर उस थाने से जुड़ी सरकारी फाइल उनके पास क्यों मौजूद थी? ये भी जांच का विषय़ है।